ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) अभी भी दुनिया की सबसे गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है, जो लाखों लोगों को प्रभावित करता है। रोकथाम और उपचार योग्य होने के बावजूद, टीबी बीमारी और मृत्यु का एक महत्वपूर्ण कारण बना हुआ है। इस ब्लॉग में, हम टीबी के खिलाफ चल रहे नवीनतम प्रयासों, विशेष रूप से वैश्विक और भारत के संदर्भ में, चर्चा करेंगे।
ट्यूबरकुलोसिस: एक स्थायी चुनौती और आगे का रास्ता
ट्यूबरकुलोसिस एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होता है। यह मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। यह बीमारी तब फैलती है जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता है, छींकता है या बात करता है। टीबी को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- सुप्त टीबी: बैक्टीरिया निष्क्रिय रहते हैं और कोई लक्षण नहीं दिखते।
- सक्रिय टीबी: बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते हैं, जिससे लगातार खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन कम होने जैसे लक्षण होते हैं।
लेटेस्ट टीबी डेटा
- वैश्विक परिदृश्य:
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- डब्ल्यूएचओ ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, टीबी 2023 में दुनिया का सबसे बड़ा संक्रामक हत्यारा बन गया, कोविड-19 को पीछे छोड़ते हुए।
- 2023 में अनुमानित 1.6 मिलियन लोगों की मृत्यु टीबी से हुई।
- दवा प्रतिरोधी टीबी (MDR-TB) के मामले गंभीर चुनौती बने हुए हैं, और भारत इनमें प्रमुखता से प्रभावित है
- भारत में टीबी की स्थिति:
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- 2023 में भारत में 25.52 लाख टीबी रोगियों का पता चला, जो 2022 में 24.22 लाख से अधिक है।
- टीबी घटनाओं में 2015 के मुकाबले 16% की कमी आई है, और मृत्यु दर में 18% की कमी आई है।
- दवा-प्रतिरोधी टीबी (DR-TB) के उपचार की सफलता दर 65% रही।
- निक्षय पोषण योजना के तहत 70% रोगियों को वित्तीय सहायता दी गई, लेकिन 2023 तक 90% का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है
वैश्विक टीबी स्थिति
डब्ल्यूएचओ ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2024 के अनुसार, टीबी अभी भी COVID-19 के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा संक्रामक हत्यारा है। हालांकि, प्रगति दिखाई दे रही है:
- घटती घटनाएं: हाल के वर्षों में वैश्विक टीबी घटनाओं में सालाना 2% की कमी आई है।
- सफल उपचार दर: पहचाने गए 86% से अधिक टीबी मामलों का सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है।
- जागरूकता में वृद्धि: वैश्विक अभियानों ने टीबी के प्रति समझ में सुधार किया है और इसके कलंक को कम किया है।
इन प्रगति के बावजूद, दवा प्रतिरोधी टीबी और निम्न-आय वाले क्षेत्रों में सीमित स्वास्थ्य सेवाओं जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं।
भारत में टीबी से लड़ाई
टीबी मामलों की सबसे अधिक संख्या वाले भारत ने 2025 तक टीबी उन्मूलन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य अपनाया है। प्रमुख पहलें:
- राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी): यह कार्यक्रम प्रारंभिक पहचान, मुफ्त उपचार और सामुदायिक भागीदारी पर जोर देता है।
- निक्षय पोषण योजना: रोगियों को पोषण सहायता प्रदान करता है जिससे उनकी रिकवरी में मदद मिलती है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को टीबी की पहचान और उपचार में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
- जन जागरूकता अभियान: “टीबी हारेगा, देश जीतेगा” जैसे अभियान कलंक को मिटाने और परीक्षण को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
टीबी अनुसंधान और उपचार में नवाचार
हाल की प्रगति ने टीबी निदान और उपचार में सुधार किया है:
- जीनएक्सपर्ट तकनीक: टीबी और दवा प्रतिरोध का तेजी से पता लगाता है।
- बेडाक्विलिन और डेलामैनिड: मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) के लिए नई पीढ़ी की दवाएं।
- वैक्सीनेशन ट्रायल्स: मौजूदा बीसीजी वैक्सीन के पूरक के लिए अधिक प्रभावी टीबी टीकों पर अनुसंधान जारी है।
आगे की चुनौतियां
इन प्रगतियों के बावजूद, टीबी उन्मूलन कई बाधाओं का सामना करता है:
- दवा प्रतिरोध: एमडीआर-टीबी और एक्सडीआर-टीबी बढ़ती चिंता का विषय हैं।
- सामाजिक कलंक: कई मरीज बहिष्कार के डर से उपचार में देरी करते हैं।
- फंडिंग की कमी: अपर्याप्त संसाधन निम्न और मध्यम आय वाले देशों में टीबी कार्यक्रमों को बाधित करते हैं।
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निष्कर्ष
ट्यूबरकुलोसिस एक रोकी जा सकने वाली और इलाज योग्य बीमारी है, फिर भी यह लाखों लोगों की जान लेती है। निरंतर प्रयासों, नवीन तकनीकों और सामूहिक इच्छाशक्ति के साथ, दुनिया टीबी को खत्म करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। भारत का आक्रामक दृष्टिकोण एक मॉडल के रूप में काम करता है, यह दर्शाता है कि सबसे कठिन चुनौतियों को भी दृढ़ संकल्प और सहयोग से पार किया जा सकता है।
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