क्या भारत में गरीब लोग दवा परीक्षणों के लिए गिनी पिग बन रहे हैं?: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और नैतिकता का सवाल

भारत में दवा परीक्षण

भारत में दवा परीक्षण हमेशा से एक संवेदनशील और चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि गरीब नागरिकों को दवा परीक्षण के लिए गिनी पिग की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या भारत में दवा परीक्षण मरीजों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किए जाते हैं, या ये केवल बड़ी दवा कंपनियों के मुनाफे का एक जरिया हैं? इस लेख में हम “भारत में दवा परीक्षण” से जुड़े नैतिक, कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में दवा परीक्षण को लेकर सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि गरीब नागरिकों को अक्सर गिनी पिग की तरह इस्तेमाल किया जाता है जिससे उनकी सुरक्षा और अधिकारों पर सवाल खड़े होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से दवा परीक्षण के लिए बनाए गए नियमों और उनकी प्रभावशीलता पर जवाब मांगा।

दवा परीक्षण के नियम और बदलाव

भारत में दवा परीक्षण को नियंत्रित करने के लिए 2019 में नए नियम लागू किए गए थे। इन नियमों का उद्देश्य परीक्षण प्रक्रिया को पारदर्शी और रोगी सुरक्षा को प्राथमिकता देना था।

  • 2019 नियम: नैदानिक परीक्षणों के लिए सख्त प्रोटोकॉल और मुआवजे के प्रावधान।
  • 2024 संशोधन: नए औषधि और नैदानिक परीक्षण संशोधन नियम लागू किए गए, जो मरीजों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित करते हैं।

गरीबों को गिनी पिग की तरह इस्तेमाल करने का आरोप

स्वास्थ्य अधिकार मंच (एनजीओ) ने आरोप लगाया है कि बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर नैदानिक परीक्षण कर रही हैं। इन परीक्षणों में गरीब लोगों को शामिल किया जाता है, जिन्हें अक्सर जोखिम और संभावित दुष्प्रभावों की पूरी जानकारी नहीं दी जाती।

नैदानिक परीक्षण की प्रक्रिया

भारत में नैदानिक परीक्षण आमतौर पर तीन चरणों में किए जाते हैं:

  1. पहला चरण: छोटी संख्या में स्वस्थ लोगों पर परीक्षण।
  2. दूसरा चरण: सीमित संख्या में मरीजों पर परीक्षण।
  3. तीसरा चरण: बड़ी संख्या में मरीजों पर परीक्षण।
    इन परीक्षणों के दौरान रोगी सुरक्षा और नैतिकता का पालन करना अनिवार्य होता है, लेकिन अक्सर इन प्रोटोकॉल का उल्लंघन होता है।

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मरीजों की सुरक्षा: वर्तमान में लागू सुरक्षा उपाय।

भारत में नैदानिक परीक्षणों के दौरान मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय लागू किए गए हैं। प्रत्येक परीक्षण शुरू होने से पहले एक स्वतंत्र संस्थागत समीक्षा बोर्ड (IRB) द्वारा उसकी समीक्षा की जाती है। प्रतिभागियों को सूचित सहमति के माध्यम से स्वैच्छिक भागीदारी का अधिकार दिया जाता है, और उन्हें किसी भी समय परीक्षण छोड़ने की स्वतंत्रता होती है। नैतिक सिद्धांतों जैसे स्वायत्तता, परोपकार और न्याय का पालन किया जाता है। सख्त प्रोटोकॉल और दिशानिर्देश सुनिश्चित करते हैं कि प्रतिभागियों के अधिकार और कल्याण प्राथमिकता में रहें। नियमित निरीक्षण और नियामक अनुपालन के माध्यम से मरीजों की सुरक्षा और परीक्षण की विश्वसनीयता बनाए रखी जाती है।Drishti IAS

भारत में दवा परीक्षण नैतिकता और कानूनीता के सवाल खड़े करता है।

  • क्या गरीब लोगों पर परीक्षण करना नैतिक है?
  • क्या दवा कंपनियां मुनाफे के लिए नियमों का उल्लंघन कर रही हैं?
  • क्या भारत के नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं?

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भारत में नैदानिक परीक्षणों से संबंधित आंकड़े और तथ्यों की जानकारी:

  1. नैदानिक परीक्षणों की संख्या में वृद्धि:
    • वर्ष 2013 में, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने केवल 17 नैदानिक परीक्षणों को मंजूरी दी थी। वर्ष 2017 तक, यह संख्या बढ़कर 97 हो गई, जो पाँच वर्षों में 400% से अधिक की वृद्धि दर्शाती है। Drishti IAS
  2. नैदानिक परीक्षणों के कारण होने वाली मृत्यु:
    • वर्ष 2005 से 2012 के बीच, भारत में नैदानिक परीक्षणों के चलते लगभग 2,800 लोगों की मृत्यु हुई। इस अवधि में स्पष्ट और प्रभावी नीति के अभाव में कई अनियमितताएँ सामने आईं।विकिपीडिया
  3. क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-इंडिया (CTRI) में पंजीकरण:
    • जून 2017 तक, CTRI में 3,318 पंजीकरण भविष्य में होने वाले दवाओं के परीक्षण के लिए और 5,604 पंजीकरण मौजूदा दवाओं के परीक्षण के लिए दर्ज किए गए थे। इससे पता चलता है कि कंपनियों ने मरीजों से करार करने के बाद परीक्षण से संबंधित जानकारी जमा की।Drishti IAS
  4. नए नियमों के तहत नैदानिक परीक्षण:
    • भारत सरकार ने 2019 में ‘न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल रूल्स’ लागू किए, जिससे नैदानिक परीक्षणों की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया। इन नियमों के तहत, विदेशी देशों में स्वीकृत दवाओं के लिए भारत में परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती, जिससे दवाओं की उपलब्धता में तेजी आई है। TV9Bharatvarsh
  5. मरीजों के लिए मुआवजा प्रावधान:
    • ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने निर्देश दिया है कि नैदानिक परीक्षणों के दौरान किसी भी प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में स्पॉन्सर को चिकित्सा प्रबंधन का खर्च वहन करना होगा और प्रभावित प्रतिभागियों को मुआवजा देना होगा। ETV Bharat

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