भारतीय वैज्ञानिकों की नई जीन थेरेपी से हीमोफीलिया के इलाज में क्रांति

नई जीन थेरेपी से हीमोफीलिया के इलाज में क्रांति

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC), वेल्लोर के वैज्ञानिकों ने भारत में पहली बार हीमोफीलिया A (Haemophilia A) के इलाज के लिए एक सफल जीन थेरेपी ट्रायल किया है। यह ट्रायल न केवल भारत बल्कि वैश्विक चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इस थेरेपी में लेंटिवायरल वेक्टर तकनीक का उपयोग किया गया है, जो रोगियों को बार-बार क्लॉटिंग फैक्टर इंजेक्शन की आवश्यकता से मुक्त कर सकती है।

हीमोफीलिया:

हीमोफीलिया A एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है, जिसमें रक्त का थक्का बनाने वाला प्रोटीन, फैक्टर VIII, पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता।

  • इस बीमारी के लक्षणों में मामूली चोट पर लंबे समय तक रक्तस्राव, जोड़ों और मांसपेशियों में खून का जमाव शामिल है।
  • विश्व स्तर पर 4 लाख लोग हीमोफीलिया से प्रभावित हैं, जिनमें से करीब 36 लाख मरीज भारत में हैं
  • भारतीय हीमोफीलिया फेडरेशन के अनुसार, हर 10 में से 8 मामलों का निदान नहीं हो पाता है।

जीन थेरेपी का कार्यक्षेत्र

इस जीन थेरेपी में लेंटिवायरल वेक्टर का इस्तेमाल किया गया है।

  • तकनीक का सिद्धांत: रोगी की हेमाटोपोएटिक स्टेम कोशिकाओं (रक्त कोशिकाओं के पूर्वज) में फैक्टर VIII जीन जोड़ा गया।
  • ये कोशिकाएं रक्त में फैक्टर VIII का उत्पादन शुरू करती हैं, जिससे रक्तस्राव की समस्या खत्म हो जाती है।
  • यह प्रक्रिया पारंपरिक इलाज के मुकाबले अधिक प्रभावी है, जिसमें बार-बार फैक्टर इंजेक्शन लेना पड़ता है।

जीन थेरेपी से हीमोफीलिया

क्लिनिकल ट्रायल की प्रमुख बातें

  1. स्थान: CMC वेल्लोर में भारत का पहला मानव जीन थेरेपी ट्रायल किया गया।
  2. सहयोग: इस प्रोजेक्ट में भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), इनस्टेम, बेंगलुरु, और एमोरी यूनिवर्सिटी, अमेरिका ने सहयोग किया।
  3. परिणाम:
    • 5 मरीजों पर ट्रायल किया गया, जिनमें 12 महीने तक किसी भी प्रकार का रक्तस्राव नहीं हुआ।
    • मरीजों ने अपनी दिनचर्या में सुधार और बेहतर जीवन गुणवत्ता की रिपोर्ट की​
  4. भविष्य की योजना:
    • जल्द ही भारत में लेंटिवायरल वेक्टर का उत्पादन शुरू होगा।
    • इसके बाद बड़े स्तर पर क्लिनिकल ट्रायल की योजना बनाई गई है।

हीमोफीलिया का आर्थिक प्रभाव और उपचार लागत

  • वर्तमान में, हीमोफीलिया का इलाज काफी महंगा है। एक मरीज को क्लॉटिंग फैक्टर इंजेक्शन पर सालाना लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
  • नई जीन थेरेपी मरीजों को एक बार के इलाज से लंबे समय तक राहत दिला सकती है, जिससे लागत में भारी कमी आएगी।
  • 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर जीन थेरेपी की लागत 10-12 लाख प्रति मरीज तक होती है, लेकिन भारत में इस तकनीक को किफायती बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है​

भारत में जीन थेरेपी की भूमिका

  • तकनीकी प्रगति: भारत ने इस क्षेत्र में कदम बढ़ाते हुए नई तकनीकों को अपनाया है।
  • मेड इन इंडिया पहल: लेंटिवायरल वेक्टर का स्थानीय उत्पादन, देश को जीन थेरेपी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकता है।
  • वैश्विक बाजार में स्थान: यदि भारत किफायती जीन थेरेपी समाधान पेश करता है, तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।

डेटा और आंकड़े

पैरामीटर   आंकड़े
भारत में हीमोफीलिया मरीज   1.36 लाख (अनुमानित)
पंजीकृत हीमोफीलिया मरीज   21,000 (20%)
हीमोफीलिया का वैश्विक बोझ   4 लाख
वर्तमान इलाज की वार्षिक लागत   ₹10-20 लाख प्रति मरीज

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निष्कर्ष

यह जीन थेरेपी भारत के लिए चिकित्सा क्षेत्र में एक नई शुरुआत है।

  • यदि यह व्यापक स्तर पर सफल होती है, तो हीमोफीलिया के लाखों मरीजों को जीवनभर के इलाज से राहत मिलेगी।
  • इसके साथ ही, भारत चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता बन सकता है।

इस उपलब्धि से यह उम्मीद जागती है कि भविष्य में जीन थेरेपी से अन्य आनुवंशिक बीमारियों का भी इलाज संभव होगा।

संदर्भ

  1. BioSpectrum India
  2. World Federation of Hemophilia

 

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